यूपी भाजपा समीक्षा: यह मिथक पहली बार टूटा है कि दिल्ली की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से निकलता है। केंद्र में तीसरी बार सत्ता में आई नरेंद्र मोदी सरकार को यूपी ने निराश किया है। चुनाव परिणाम के बाद आम हो चुका था कि अगर यूपी साथ देता तो कुछ और ही होते ठीक, जो होना था हो चुका। अब भाजपा के लिए जरूरी है कि हर की वजहों को तलाशा जाए। इसके अलावा भाजपा संगठन पर तेजी से काम भी हो रहा है।
कई दौर की नियति के बाद कई ऐसे कारण सामने आए हैं, जिनसे पता चलता है कि आखिर यूपी में भाजपा का बुरा हाल क्यों हुआ? वहीं, भाजपा के रणनीतिकारों के अनुसार जल्द ही पूरी रिपोर्ट तैयार कर दिल्ली में छापेमारी की जाएगी। उसके बाद कई महत्वपूर्ण फैसले लिए जा सकते हैं, जो पार्टी संगठन के साथ ही सरकार में बदलाव तक की बात कह रही है। सूत्रों के अनुसार जो खबर आ रही है, उसके अनुसार यूपी में हर की प्रारंभिक रिपोर्ट तैयार हो गई है।
ट्रकों में था अति उत्साह
चुनाव में उतरे मोदी और योगी आदित्यनाथ के नाम पर खुद को जीता हुआ मानकर चल रहे थे। इसके कारण वे अति उत्साह में थे और सुनने को यह बात खटक गई। इसके अलावा मोदी सरकार के पहले कार्यकाल से लगातार दो बार जीत हासिल कर चुके लोगों में से जनता में निराशा थी। क्षेत्र में गैर-जिम्मेदारी के अलावा काम में ढिलाई इस निराशा की बड़ी वजह थी। कई रिश्तेदारों के साथ गलत व्यवहार की शिकायतें भी थीं। कई जिलों में सांसद सोनिया गांधी की लोकप्रियता इतनी हावी हो गई कि भाजपा कार्यकर्ता संगठनों से ही नहीं निकली।
सांसद और विधायक के बीच तालमेल नहीं
एक और बात समीक्षा के दौरान सामने आई कि पार्टी के नेताओं के साथ तालमेल अच्छा नहीं रहा। इसके कारण लोगों की वोट वाली पर्ची बनाने का काम बहुत ज्यादा ढिलाई से हुआ। जबकि, इसी प्रकार के प्रबंधन से पूर्व में अप्रत्याशित परिणाम सामने आ रहे हैं। इसके अलावा कुछ आंकड़ें मे सतह की अपने ही सांसदों से नहीं बनी। तालमेल के अभाव में राहत ने ऐसे मन से ध्यान हटाने का सहयोग नहीं किया।
यूपी में हर ने बढ़ाई भाजपा की चिंता
यह बात भी सामने आई है कि राज्य सरकार ने करीब 3 दर्जन मंत्रियों के टिकट काटने या बदलने के लिए कहा था, जिसे नजरअंदाज किया गया। दावा है कि यदि सरकार की ओर से दिए गए सुझावों पर अमल हुआ तो परिणाम कुछ और हो सकता था। एक और जगह जहां भाजपा के नेता कमजोर साबित हुए, वह है विपक्ष के संविधान बदलने और आरक्षण खत्म करने के दावे का पूरी तरह से जवाब नहीं दे पाना।
पक्ष-पिछड़ों को घर कर गई संविधान बदलने की बात
सपा के नेताओं में अखिलेश यादव अपनी प्रत्येक सभा या रैली में भाजपा द्वारा संविधान बदलने की बात को पूरी ताकत से जारी रखे हुए थे। इसका नतीजा यह हुआ कि पिछड़े वर्ग और पिछड़े वर्ग में यह बात घर कर गई, जिसके चलते उन्होंने भारतीय गठबंधन के पक्ष में काफी हद तक मतदान किया।
भाजपा नेता जनता के बीच अपनी बात नहीं पहुंचा सकते
वैसे तो भाजपा के स्टार प्रचारकों और नेताओं ने अपने चुनावी भाषण में केंद्र और राज्य सरकार की ओर से गरीब कल्याण से जुड़ी योजनाओं का बढ़ा-चढ़ाकर ब्योरा दिया, लेकिन कांग्रेस की 8500 रुपये महीने की योजना ने लोगों को खासा आकर्षित किया। जबकि, भाजपा इस स्कीम के काउंटर में कोई सटीक गणित लोगों को समझ नहीं पाती। स्थानीय समीकरणों के साथ ही लगभग हर सीट पर पेपर लीक और अग्निवीर जैसी योजनाओं की तमाम मुश्किल बातें, जनता को पनपने में कामयाब हो रही हैं, जबकि भाजपा ठीक ढंग से काउंटर नहीं कर पा रही है।
निश्चित रूप से हार के कई कारण हैं- कपिल देव अग्रवाल
इस बीच उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री कपिल देव अग्रवाल ने कहा कि चुनाव के अप्रत्याशित परिणाम आते हैं, इसमें कोई दो राय नहीं हैं. इसकी समीक्षा प्रदेश संगठन की ओर से की जा रही है। ऐसे में निश्चित रूप से हार के कई कारण होते हैं, विशिष्ट अध्ययन नहीं किया जा सकता।
जनता ने बीजेपी को अहंकार के कारण हराया- कांग्रेस
वहीं कांग्रेस के प्रवक्ता सुरेन्द्र राजपूत ने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि भाजपा को देश की जनता ने उसके अहंकार के कारण हराया है। उन्होंने कहा कि भाजपा जनता से ऊपर चली गई थी। जनता जनार्दन मूर्ख समझ रही थी. रोजगार देने लगी, बेरोजगारी देने लगी, पेपर लीक, आग्नेयास्त्र समस्या देने लगी।
राजपूत ने कहा कि भाजपा स्पष्ट रूप से जनता के मुद्दे नहीं करना चाहती थी इसलिए जनता ने उन्हें नहीं किया। उन्होंने कहा कि भाजपा के नेता अपने अहंकार को दूर करेंगे। अग्निवीर और मॉन्युमेंट जैसी समस्या को केवल लोगों से दूर रखेंगे।
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